Thursday, July 21, 2016

हम इकट्ठे होते हैं लेकिन सिर्फ तब जब जनाजे उठते हैं...

भाभी जान कैसी हैं आप...?

शादी के बाद भाभी तो कई लोगों ने कहा लेकिन भाभी जान...मन में पहला ख्याल यही आया कि इस लड़के के घर में भाभी को वाकई मां का दर्जा दिया जाता होगा. वरना हमारे यहां के तो ज्यादातर लड़के भउजी के साथ सिर्फ फगुआ ही खेलना सीखते हैं.

पतला-दुबला, गोरा सा वो लड़का सामने बैठा था. पानी पीकर उसने ग्लास टेबल पर नहीं, ट्रे में रखी. चाय पूछा तो बोला, मुझे यहां की चाय अच्छी नहीं लगती. मैं ट्रे रखने किचन में चली गई और वो बैठकर बातें करने लगा.

थोड़ी देर बाद मैं भी उनके साथ ही बैठ गई. मुझे पता था कि वो कश्मीर से आया है. मैंने उससे पूछा आपको तो यहां अच्छा नहीं लगता होगा न...वहां कितनी खूबसूरती है. फ्रेश एयर... सबकुछ नेचुरल. यहां तो बस शोर और धुंआ. मुझे पूरा यकीन था कि वो हां ही कहेगा. वैसे भी कोई रहने वाला चाहे जहां का हो, उसे पसंद अपना ही जिला होता है. पर उसने कहा नहीं...उसे नोएडा में रहना बहुत पसंद है. उसे यहां आकर लगा कि वो आजाद है.

मेरे मुंह से निकला आजाद हैं मतलब?

मतलब, पहली बार मैं हर काम टाइम पर करता हूं. 9 बजे उठता हूं, ऑफिस जाता हूं. ऑफिस खत्म करके मन करता है तो घर आता हूं नहीं तो घूमने चला जाता हूं. कभी भी कुछ भी कर सकता हूं. वहां ऐसा नहीं है. वहां किसी काम को करने का कोई टाइम फिक्स नहीं कर सकते. कभी कर्फ्यू खत्म होने का वेट करते हैं तो कभी गोलीबारी के रुकने का.

हम लोग घर में रहकर भी एक कान बाहर रखते हैं. हर समय कोई न कोई अनाउंसमेंट होती रहती है. सुनना भी जरूरी है. नहीं तो पता चला कि घर के बाहर निकल गए, गोली मार दी गई. जब गोली चलती है तो एक्सक्यूज थोड़े सुनता है कोई.

फिर भी कश्मीर तो कश्मीर है न...मैंने उस कश्मीर को सोचकर ये बात कही थी जिसे इंडिया का स्वीट्जरलैंड कहते हैं.

उसने बताया ऐसा नहीं है भाभी...वहां चीजें अच्छी हैं. जगहें अच्छी हैं लेकिन माहौल नहीं.

जब मैं यहां आया था तो एक रिश्तेदार के साथ रहता था. कुछ ही दिन था. उनका बच्चा रोज स्कूल नहीं जाने के लिए रोता था. मुझे बहुत अजीब लगता था ये सब क्योंकि हम तो स्कूल जाने के लिए रोते थे. स्कूल जाते थे और पता चलता था कि स्कूल बंद करने का फरमान आ गया है. बहुत दुख होता था. यहां तो कितनी वेकेशंस हैं...समर, विटंर...पता नहीं क्या-क्या. हमारे यहां वेकेशन की नौबत ही नहीं आती. जब देखो तब छुट्टी.

फिर बताने लगा कि जब  यहां आया तो राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर लोगों का हुजूम देखकर डर गया. सोचा किसी ने बम रख दिया तो सब मर जाएंगे. भीड़ देखकर पहला ख्याल बम का आाता है. उसके बाद कुछ और...क्योंकि हमारे यहां लोग इक्ट्ठा होने में डरते हैं. उनके जहन में ये बात रहती है कि जहां भीड़ होगी वहीं बम फोड़ दिया जाएगा. वहां लोग जमा होते हैं लेकिन जनाजे उठाने के लिए. वो भी दिल को ये तसल्ली देकर कि हमला करने वाले भी ये सोचेंगे कि कोई मर गया है. अभी कुछ नहीं करना चाहिए.

वो सुना रहा था हम सुन रहे थे. फिर चुप हो गया. ये वाले कश्मीर के बारे में कोई नहीं बोलता. बहुत दिक्कतें हैं वहां. बहुत ज्यादा. यहां तो सब कितना ईजी है. घर भी आसानी से मिल जाता है. वरना वहां पर तो बहुत सी ऐसी जगहें हैं जहां घर ही नहीं ले सकते.

फिर वो चुप हो गया. बोला आप लोगों को सब अजीब लग रहा होगा न...पर कश्मीर ऐसा ही है. वहां लोगों की जिंदगी छिपते और बचते ही निकल जाती है. जो बाहर निकल जाते हैं, समझ जाते हैं आजादी किसे कहते हैं और फिर लौटते नहीं है. आते भी हैं तो मेहमान की तरह...जैसे मैं. अम्मी-पापा को भी लाना चाहता हूं, बस थोड़ा सेटल हो जाऊं.

वो वहां से बाहर कभी गए ही नहीं...अब रोज जब मैं उन्हें यहां की बातें बताता हूं तो उन्हें यकीन ही नहीं होता है कि चीजें इतनी आसान हैं. कितना आसान है बाहर निकलना, देर रात तक घूमना. आईडी रखना जरूरी है लेकिन नहीं रखे तो भी चल जाता है. वहां की तरह आईडी नहीं होने पर पकड़े जाने का डर नहीं है.

उन्हें इस आजाद देश के बारे में कुछ पता ही नहीं है...

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